निष्पक्ष
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होली की ये पर्व मनोरम
मिलजुल कर हम मनाएँ ।
ऊँच-नीच का भेद भुलाकर
एक रंग में रंग जाएँ
आज न कोई राज-रंक
नहीं किसी से बैर
आज न कोई जात-पात
ना है किसी से अरैड़
अपना हो या गैर किसी का
आज न रंग से खैर
आपस में सब मिलजुल कर
एक दूजे को गले लगाऐ ।
होली की ये पर्व मनोरम
मिलजुल कर हम मनाएँ ।
नहीं मिलेगा फिर ये मौका
आपस में मिल जाने का
नफरत और पूर्वाग्रह की बीजों को
जड़ से समूल मिटाने का
आज रंग में धरा रंगी है
रंगी है आज फिजाऐ
आज रंग में गगन रंगी है
रंगी है चारो दिशाए
लाल-गुलाबी, पीले नीले
उड़े गुलाल हवा में
रे मन ऐसी रंग में रंग जा
जीते जी न छुट पाए ।
होली की ये पर्व मनोरम
मिलजुल कर हम मनाएँ ।
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