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सत्य

निष्पक्ष
निष्पक्ष
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सत्य को दवाने के लिए
सत्य को मिटाने के लिए
इन्हे ख़त्म करने के लिए
चाहे लाख करलो उपाय
ये मिट नहीं सकता
ये तो है दुव की तरह
जिसे जेठ की भीषण गर्मी
सुखा देता है
इन्हे विलुप्त कर देता
खेतों से
खलियानों से
इनका अस्तित्व मिटा देता
इन्हे गुजरना पड़ता है
लोहे के नुकीले हल से
इन्हे चोट खाना पड़ता है
कुदाल के पसाठ से
क्या ये हार मन लेता है
नहीं ।
श्रावण-भादो कि बारिस की बुँदे
जब पड़ता है धरा पर
ये फिर खिल उठता है
सत्य को पराजित करने को
रचा जाता बड़ा-बड़ा खडयन्त्र
कभी इन्हे घसीटा जाता
राजनीति के गलियारे में
कभी तोड़ने की कोशिश होता
न्यायालय के इन दरवाजो में
कभी गुजरना पड़ता
मार्केट के चौराहे में
लगता नहीं कर पायेगा अग्नि परीक्षा
इन मक्काड आदमी से
जिसका मर चूका है आत्मा
घूमता रहता हाड़, मांस के साथ
सोचता रहता चक्रव्युह हरदम
सत्य को झुठलाने को
फिर भी जीत जाता सत्य ॥

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